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कर्तव्यों का बोध कराती है रामकथा : कंझेटा में चन्द्रवंशी समाज द्वारा आयोजित पंच दिवसीय रामचरितमानस में कथा श्रवण के लिए उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़

आशु चंद्रवंशी,बड़ेगौटिया/कवर्धा। चन्द्रवंशी समाज कंझेटा द्वारा आयोजित पंच दिवसीय रामचरितमानस कथा में श्री श्री 1008 श्री जगद्गुरू रामानंदचार्य स्वामी धीरेन्द्राचार्य जी महाराज के श्रीमुख से राम कथा का श्रद्धालुओं ने रसपान किया। उन्होंने कहा कि श्रीराम कथा विश्व कल्याणदायनी है, लोक मंगलकारी है। प्रभु श्रीराम का आचरण एवं व्यवहार अपनाने से जीवन आनंदमय हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज ने श्रीराम कथा के माध्यम से मानव जीवन संबंधों की महत्ता स्थापित की है।

यही वजह है कि श्रीरामचरित मानस में गुरु, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई, मित्र, पति-पत्नी आदि का कर्तव्य बोध एवं सदाचरण की सीख हमें सर्वत्र मिलती है। कथा में उन्होंने बताया कि भक्ति मार्ग में सुख शांति का प्रभा है, जहां आनंद की शीतल छाया मिलती है। तुलसीदास ने रामचरितमानस में श्रद्धा को भवानी और विश्वास को शंकर का प्रतिरूप मानते हुए दोनों की समवेत वंदना की है। कहा कि परमात्मा से जुड़ने के लिए श्रद्धा और विश्वास ही तो साधन बनता है। कथा की सार्थकता तब सिद्ध होती है, जब इसे हम दैनिक जीवन के व्यवहार में शामिल करते हैं। राम कथा सुनने से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और मन में शांति व मुक्ति मिलती है। भगवान राम का प्रिय भक्त बनना है तो हनुमान के चरित्र से सीख लेनी होगी।

कथा के द्वितीय दिवस में श्रद्धालुओं की भिंड उमड़ पड़ी

रामचरितमानस कथा के द्वितीय दिवस कथा व्यास पूज्य महाराज जी ने राम वनवास व राम केवट संवाद कथा की मनोहारी व्याख्या किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि जब आप दूसरे की मर्यादा को सुरक्षित रखेंगे तभी आपकी मर्यादा सुरक्षित रह सकेगी।

भगवान राम 14 वर्ष वनवास के लिए सीता और लक्ष्मण के साथ गंगा घाट पर पहुंचे और केवट से गंगा पार करने के लिए नाव मांगा तो केवट ने कहा, मैं तुम्हारे मर्म जान लिया हूं चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। पहले पांव धुलवाओ फिर नाव पर चढ़ाऊंगा। कथा कथा व्यास ने कहा कि जिससे पूरी दुनिया मांगती है आज गंगा पार जाने के लिए दूसरे से मदद मांग रहे हैं, जो सारे सृष्टि को तीन पग में नाप सकता है, क्या वह पैदल गंगा नहीं पार कर सकता। भगवान दूसरों की मर्यादा को समझते हैं, वैसे ही घाट की एक मर्यादा होती है। भगवान केवट के पास इसलिए आए कि वह हम लोगों से कहना चाहते हैं कि हम लोग बहुत बड़े बड़े लोगों के दरवाजे पर उनके सुख-दुख में जाते रहते हैं। भगवान कहना चाहते हैं कि हमें कभी छोटे लोगों के यहां भी जाना चाहिए। राम केवट कथा सुनने से हमें यह सीख लेनी चाहिए। कथा को भाव व प्रेम से सुनने वाले ही ज्ञान प्राप्त करते हैं। रामायण का मुख्य रस करुण वास्तव में हृदय में करुणा आ जाए तो वीरता और पराक्रम की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। द्वितीय दिवस की कथा का विश्राम रामायण आरती के साथ हुआ।

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