आम चर्चा

दो दिवसीय भोरमदेव महोत्सव के पहले दिन देश-प्रदेश के नामचीन कलाकारों ने दी अपनी प्रस्तुति,आज सारेगामापा विजेता इशिता विश्वकर्मा सहित कई दिग्गज कलाकार बिखेरेंगे जलवा

कवर्धा। सतपुड़ा पर्वत की मैकल पहाडी श्रृखलाओं से घिरे सुरम्यवादियों में स्थिति ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर के प्रांगण में वर्षो से आयोजित हो रहे भोरमदेव महोत्सव की परंपरा को कायम रखने जिला प्रशासन द्वारा दो दिवसीय भोरमदेव महोत्सव के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दीप प्रज्जवलित कर वैदिक मंत्रोचार के साथ भगवान भोरमदेव की पूजा अर्चना और छत्तीसगढ़ महतारी के तैल्यचित्र पर पुष्प अर्पित कर छत्तीसगढ़ की राजकीय गीत के साथ विधिवत शुभारंभ हुआ। शुभारंभ अवसर पर कबीरधाम जिले के प्रसिद्ध मंदिरों और आदिवासी बैगा समाज के पुजारी विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस अवसर पर मंच पर बुढ़ा महादेव मंदिर के पुजारी मनहरण दुबे, मां दन्तेश्वरी मंदिर के पुजारी अजय राजपूत, मां चण्डी मंदिर के पुजारी तिहारी चन्द्रवंशी, खेड़ापति हनुमान मंदिर के पुजारी चन्द्रकिरण तिवारी, ग्राम कामठी पंण्डरिया के परसराम मरकाम और ग्राम भुरसीपकरी बोड़ला के लमतू सिंह बगदरिया, पंडरिया विधायक ममता चंद्राकर, कवर्धा नगर पालिका अध्यक्ष ऋषि शर्मा, जनपद अध्यक्ष लीला धनुक वर्मा, कलेक्टर जनमेजय महोबे, पुलिस अधीक्षक डॉ लाल उमेंद सिंह, डीएफओं चुड़ामणी सिंह, जिला पंचायत सीईओं संदीप कुमार अग्रवाल उपस्थित थे।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ करते हुए समस्त पुजारियों ने महोत्सव में विशेष रूप से आमंत्रित करने पर महोत्सव के आयोजक भोरमदेव सनातन तीर्थ ट्रस्ट, जिला प्रशासन तथा सरकार के प्रति अभार व्यक्त किया। पंडरिया विधायक श्रीमती ममता चंद्राकर ने कहा कि पिछले वर्ष के परम्परा के अनुरूप इस वर्ष भी जिले के पुजारियों अतिथि के रूप में आशिर्वाद देने पहुंचे है। भोरमदेव महोत्सव में छत्तीसगढ़ी संस्कृति सहित भारतीय परम्पराओं पर अधारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने कलाकार आए है। छत्तीसगढ़ की लोक परम्परा विख्यात है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ विकास की पथ पर आगे बढ़ रहा है। छत्तीसगढ़ की परम्परा को सहजने का काम किया जा रहा है। महोत्सव में भी छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति, लोकगीत को प्रस्तुत करने का मौका दिया गया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ के कलाकारों द्वारा देश के साथ-साथ विदेशों में भी छत्तीसगढी संस्कृति, परम्परा के महत्व को बढ़ाते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला रहे है। नगर पालिका अध्यक्ष श्री ऋषि शर्मा ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।

कलेक्टर जनमेजय महोबे ने विशेष अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन करते हुए भोरमदेव महोत्सव की आरंभ से लेकर वर्तमान दौर तक पूरी विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक, पुरातात्विक, पर्यटन और जन आस्था के रूप में ऐतिहासिक महत्व का स्थल है।इस मंदिर की ख्याति देश के अलग-अलग राज्यों तक फैली हुई है। यहां साल भर विदेशी, देशी तथा घरेलु पर्यटकों तथा श्रद्धालुओं के रूप में आना होता है। बाबा भोरमदेव मंदिर में प्रत्येक वर्ष होली के बाद कृष्णपक्ष के तेरस और चौदस को महोत्सव मानाने की यहां परम्परा रही है। साथ में सावन मास में मंदिर में विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है। यहां सावन माह में मेले का आयोजन भी होता है जिसमें देशी तथा घरेलु पर्यटकों तथा श्रद्धालुओं के रूप में शामिल होते है। कलेक्टर ने ऐतिहासिक महत्व स्थल भोरमदेव मंदिर की भव्यता और उसके महत्व को बनाए रखने के लिए राज्य शासन के पुरातत्व विभाग और जिला प्रशासन द्वारा किए जा रहे प्रयासों की पूरी जानकारी भी दी। कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक द्वारा महोत्सव के समस्त विशेष अतिथियों को प्रतीक चिन्ह, शॉल-श्रीफल भेंटकर सम्मानित भी किया।

भोरमदेव महोत्सव में पंडवानी, ओडिसी नृत्य सहित छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति पर आधारित विभिन्न कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति

जिला प्रशासन द्वारा आयोजित दो दिवसीय भोरमदेव महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर रविवार की रात छत्तीसगढ़ के ख्याति प्राप्त कलाकारों और स्कूली बच्चों द्वारा रंग-बिरंगे पोशक में जहां छत्तीसगढ़ की लोक कलाओं, लोक संस्कृति पर आधारित गीत एवं नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। भोरमदेव महोत्सव के पहले दिन कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखंड के ग्राम बारपानी निवासी मोहतु बैगा एवं साथी के द्वारा बैगा नृत्य के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ हुआ। इसके बाद जिले के स्कूली बच्चों ने सामुहिक नृत्य के साथ अपनी प्रस्तुति दी। बोडला के रजउ साहू छत्तीसगढ़ की लोकगीत एवं नृत्य की प्रस्तुति दी। रायपुर की पूर्णश्री राउत भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करती हुए ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति दी। देगी। इसके बाद भिलाई की ऋतु वर्मा द्वारा छत्तीसगढ़ की पण्डवानी की प्रस्तुति दी। कोरबा के जाकिर हुसैन ने सुपर हिट गीतों की प्रस्तुति देकर मंच का शंमा बांधा। इसके बाद छत्तीसढ़ी लोकगीतों के गायन की प्रस्तुति देते हुए सुनील तिवारी ने अपने चीर परचीत अंदाज में छत्तीसगढ़ की संस्कृति सहित सुपर डुपर गानों की शानदार प्रस्तुति देकर महोत्सव का मान बढ़ाया। जिला प्रशासन द्वारा कलाकारों को पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।

इससे पहले भोरमदेव महोत्सव का विधिवित शुभारंभ करते हुए 12 से 12.30 बजे के बीच बोड़ला ब्लॉक के चरण तिरथ, बैगा करमा नर्तक दल बारपानी के मोहतु सिंह एवं साथी के द्वारा शानदार बैगा नृत्य की प्रस्तुति दी। इसके साथ ही 12.30 बजे से 1.15 के बीच ग्राम गैंदपुर के कुमार साहू द्वारा शिव पार्वती कथा एवं भजन, 01.15 से 02 के बीच ग्राम हथलेवा के रेवाराम मरकाम द्वारा जसगीत, 02 से 02.45 के बीच ग्राम जिंदा के रामजस साहू द्वारा जसगीत, 02.45 से 3.30 के बीच सुरमोहनी मानस परिवार ग्राम सोनझरी रमेश साहू द्वारा भजन मंडली, 3.30 से 4.30 के बीच ग्राम गोछिया के संतोष दास द्वारा पंण्डवानी और 4.30 से 5 के बीच ग्राम बरहट्ठी के खिलावनदास अनंत द्वारा पंथी नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी।

बिरनमाला (स्वर्णमाला) से हुआ भोरमदेव महोत्सव के सभी अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन

भोरमदेव महोत्सव में आए सभी अतिथियों का विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के विशेष आभूषण बिरनमाला (स्वर्णमाला) से स्वागत और अभिनंदन हुआ। कलेक्टर श्री जनमेजय महोबे ने भोरमदेव महोत्सव में आए सभी अतिथियों का आदिवासी संस्कृति बिरनमाला (स्वर्णमाला) से स्वागत किया। बैगा समाज के इतवारी मछिया ने बताया कि सोने की तरह चमकने वाली यह माला वस्तुतः घास से बनती है। यह बैगा आदिवासियों का एक प्रिय गहना है। जिसे खिरसाली नाम के पेड़ के तने और सुताखंड और मुंजा घास के रेशों से बनाया जाता है।

आमतौर पर माला को गूंथने के लिए मुंजा घास का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यह बहुतायत में होती है। यह अक्टूबर-नवंबर माह में उगती है। पहले खिरसाली के तने को छीलकर समान आकार के छल्ले बनाए जाते हैं। फिर उन्हें गूंथा जाता है फिर हल्दी के घोल में डुबा कर सुखाया जाता है। अन्य प्राकृतिक रंगों में भी इन्हें रंगा जा सकता है। ऐसी एक माला को बनाने में कम से कम तीन दिन लग जाते हैं। पूरा काम बड़े जतन से हाथ से किया जाता है। उन्होंने बताया कि कोई धार्मिक कार्यक्रम हो या फिर मेला-मड़ई या फिर उत्सव या विवाह, अपने अतिथियों का स्वागत बैगा आदिवासी इसी बिरन माला से करते हैं। नृत्य के अवसर पर बैगा महिलाएं इसे सिर पर भी धारण करती हैं।

Related Articles

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Back to top button