पालीगुड़ा में स्थानीय महामाया मंदिर में चल रहे श्रीमद्भागवत के पंचम दिवस में चित्रकूट से पधारे भरत जी महाराज ने रूखमणी विवाह का किया सुंदर वर्णन

आशु चंद्रवंशी, कवर्धा। पालीगुड़ा में स्थानीय महामाया मंदिर में चल रहे श्रीमद्भागवत के पंचम दिवस में चित्रकूट से पधारे भरत जी महाराज ने रुक्मणी विवाह का सुंदर वर्णन किया उन्होंने भगवान कृष्ण को कर्म का प्रतीक और रुक्मणी को लक्ष्मी का प्रतीक बताया ।लक्ष्मी उसी को प्राप्त होती है जो कर्म करता है उन्होंने कहा कि मानव तभी श्रेष्ठ होता है जब वह कर्म करते हुए भगवान पर विश्वास रखता है। सभी पधारे हुए श्रोताओं को उद्बोधन करते हुए उन्होंने कहा परमात्मा की कृपा चाहिए तो कृ अर्थात करना होगा तब पा अर्थात पाओगे। श्रीमद् भागवत के अंतर्गत उन्होंने भगवान कृष्ण के बाल चरित्र का सुंदर वर्णन किया इसमें पूतना वध, तृणावर्त उद्धार मृदा भक्षण माखन चोरी और गोवर्धन पूजा चीर हरण जैसी लीलाओं का सुंदर वर्णन किया और हर कथा को आध्यात्मिक दृष्टि से डालते हुए उन्होंने भागवत को जीवन का श्रेष्ठ ग्रंथ बताया। मनुष्य यदि संपूर्ण होना चाहता है तो उसके लिए श्रीमद् भागवत जैसे ग्रंथ का श्रवण उसको करना ही होगा तभी जीवन की पूर्णता होगी वैष्णव परिवार के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में भागवत व्यास के रूप में चित्रकूट से पंडित भरत भाई वाजपेई पधारे हुए हैं जिन्होंने इस पावन कथा को आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत सरस बना दिया है भजनों का आनंद लेते हुए श्रोता झूम उठे और भगवान कृष्ण की मस्ती में सराबोर हो गए। कंस वध की कथा को सुनाते हुए उन्होंने कहा की कंस अहंकार का स्वरूप है जब अहंकार भगवान के सामने आता है तो तुरंत नष्ट हो जाता है जहां मैं है कहां हरि नहीं जहां हरि हैं मैं नाहि, अंत में रुक्मणी विवाह की सुंदर कथा एवं झांकी का भी दर्शन किया अंत में निर्माण परिवार में सभी पधारे श्रोताओं का आभार व्यक्त किया और कथा व्यास ने सभी श्रोताओं को व्यास मंच से शुभ आशीर्वाद प्रदान किया।