चुनाव का मौसम आया :दलबदलु नेताओं का शुरू हुई दल बदल की सुगबुगाहट
आशु चंद्रवंशी,बड़ेगौटिया/कवर्धा। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जिले में राजनीतिक सियासत गरमाई हुई है. हालांकि, हर चुनाव की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं के दल बदलने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. इसके साथ ही राजनीतिक पार्टियों की ओर से दूसरे दलों के नेताओं के संपर्क में होने की भी बात कही जा रही है. अगले कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव और साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं. इसके पहले ही राजनीतिक गलियारों में हलचल शुरू हो गई है. कांग्रेस और भाजपा सहित विभिन्न पार्टियां की वर्तमान स्थिति चुनाव से पहले दलबदल की ओर इशारा भी कर रही है. पिछले कुछ महीनो से लगातार जिले में भाजपा और कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित जोगी कांग्रेस व अन्य पार्टियों में शामिल होने वाले ग्रामीणों और नेताओं की लिस्ट लंबी है।आखिर क्या है इसके पीछे की संभावना? पढ़िए बड़ेगौटिया के विशेष लेख में………
दलबदलू नेता जिस दल को छोड़ते हैं, केवल उसे ही असहज नहीं करते, बल्कि वे जिस दल में जाते हैं वहां भी समस्या पैदा करते हैं, क्योंकि उसके चलते उसके क्षेत्र से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे नेता को झटका लगता है। कई बार वह नाराजगी में विद्रोह कर देता है या फिर किसी अन्य दल में शामिल हो जाता है। जिस तरह चुनाव की घोषणा होने के बाद दलबदल होता है, उसी तरह प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद भी। जिस दल के नेता का टिकट कटता है, वह दूसरे दल जाकर प्रत्याशी बनने की कोशिश करता है। शायद ही कोई दल हो, जिसे टिकट के दावेदारों के चलते खींचतान का सामना न करना पड़ता हो, लेकिन वे कोई सबक सीखने को तैयार नहीं।
हम जिस दल के लिए उन्हें वोट देते हैं, पाँच साल में वे दूसरे या तीसरे दल की तरफ़ हो जाते हैं और कभी तो चौथे में जाकर हमसे फिर वोट माँगने आ जाते हैं, लेकिन हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हम फिर उन्हीं को वोट देते हैं। वे फिर दल बदल लेते हैं।
चुनाव आयोग को मिलें और अधिकार
यह सही समय है कि चुनाव आयोग को लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए कुछ और अधिकार दिए जाएं। फिलहाल चुनाव आयोग के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं कि वह चुनाव के समय दल बदलने वालों पर कोई कार्रवाई कर सके। उसके पास आपराधिक छवि वालों को चुनाव लडऩे से रोकने का भी कोई अधिकार नहीं। यह ध्यान रहे कि दलबदल सरीखी गंभीर समस्या आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का चुनाव लडऩा भी है। इसी तरह एक अन्य समस्या पैसे के बल पर चुनाव जीतने की प्रवृत्ति भी है। ये खामियां भारतीय लोकतंत्र के लिए एक धब्बा हैं। समय-समय पर मीडिया और सामाजिक संगठन चुनाव सुधारों की ओर राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित तो करते हैं, लेकिन वे उस पर गौर नहीं करते। यदि राजनीतिक दलों का यही रवैया रहा तो न केवल भारतीय लोकतंत्र की गरिमा गिरेगी, बल्कि राजनीति उन नेताओं के हाथों में कैद हो जाएगी, जिन्होंने जनसेवा की आड़ में सियासत को एक पेशा बना लिया है और जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
अंत में बड़ेगौटिया के कुछ सवाल
क्या दलबदल करने वाले नेता मौकापरस्त होते हैं, राजनीतिक दल इनको मौका क्यों देते है?
क्या नेता बिकाऊ हैं ?
क्या दलबदलू नेताओं को पार्टी में लेना निष्ठावान कार्यकर्ताओं का अपमान नहीं है?
राज्य में दलबदल चुनाव से पहले आम हो गया है, इसे बढ़ावा क्यों दिया जाता है?
दलबदलू नेताओं को टिकट मिलना चाहिए की नहीं ?