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व्यास पीठ पंडित श्री भोजराज शास्त्री जी महाराज ने रामभक्त हनुमान और कृष्णभक्त अर्जुन के बीच शर्त लगाने के प्रसंग को बताया

आशु चंद्रवंशी, कवर्धा। पुराणों में देवता-दैत्य युद्ध का वर्णन तो अनेकों बार मिलता है परंतु क्या कभी आपने रामभक्त हनुमान और कृष्णभक्त अर्जुन के बीच शर्त लगाने के प्रसंग के बारे में जानते है। शुक्रवार को नेउरगांव कला में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में व्यास पीठ पंडित श्री भोजराज शास्त्री महाराज जी ने भक्तों को यह प्रसंग सुनाया। श्री शास्त्री जी महाराज ने प्रसंग में बताया कि एक बार कि बात है भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आज्ञा देकर पुष्प लेने भेजा, परमवीर अर्जुन अपने तीर कमान उठाकर पुष्प लेने चल दिए. संयोगवश वह चलते-चलते उसी कदली वन में गए, जहां हनुमान जी तपस्या किया करते थे. अर्जुन का ध्यान तो हनुमान जी पर नहीं गया परंतु जैसे ही अर्जुन ने पुष्प तोड़े तभी हनुमान जी क्रोध में आकर प्रकट हो गए और अर्जुन से बोले, “हे मनुष्य! तुम कौन हो और तुमने राम जी के इस बागीचे से पुष्प क्यों चोरी किये.” अर्जुन ने उत्तर दिया, ” भगवान की पूजा के लिए ही तो पुष्प तोड़े हैं, इसमें क्या चोरी?”

जब हनुमान जी ने श्रीकृष्ण को कहा चोर
यह सुन हनुमान जी ने पूछा, “कौन भगवान?” जिस पर अर्जुन बोले, “भगवान श्रीकृष्ण”. यह सुन हनुमान जी जोर से मुस्कुराए और बोले अच्छा ठीक है, ले जाओ. हनुमान जी का यह मुस्कुराना अर्जुन को थोड़ा खला और उन्होंने पूछा, “पर श्रीकृष्ण का नाम सुन आप हंसे क्यों?” इस पर हनुमान ने उत्तर दिया, “अरे जिसका भगवान ही चोर हो, कोई उसे क्या बोले”. अब यह सुन तो अर्जुन के क्रोध का ठिकाना ही नहीं रहा.

हनुमान-अर्जुन के बीच लगी शर्त
अर्जुन बोले, “और हम अच्छी तरह जानते है आपके भगवान राम को, पूरे समय हाथ में धनुष-बाण लिए रहते हैं, फिर भी एक बाण चलाकर समुद्र पर पुल नहीं बांध सके. वे फालतू में जीव-जंतुओं से पत्थर ढुलवाए, मेरे में इतना बल है कि एक बाण से मैं समुद्र पर पुल बांध सकता हूं.” हनुमान जी तो विनोद के मूड में थे, वे बोले, “अरे महाराज! श्रीराम के उस पुल पर चढकर हजारों बन्दर समुद्र पार गए थे, अगर तुम्हारे बनाए पुल पर मैं अकेला पार चला जाऊं तो कहना.” अर्जुन भी जोश में थे, वे बोले ठीक है, अगर पुल टुटा तो मैं अग्नि में जलकर भस्म हो जाऊंगा. हनुमान जी बोले, अगर नहीं टुटा तो जो तुम बोलोगे, मैं वही करूंगा.

अर्जुन का पुल टूट गया
अर्जुन ने अपनी शक्ति का प्रयोग कर हजारों तीरों की वर्षा करके समुद्र पर बहुत विशाल पुल का निर्माण कर दिया. निर्माणकार्य पूरा होने पर हनुमान जी ने अपना स्वरूप बड़ा किया और देखते ही देखते हनुमान जी का शरीर हजारों योजन का हो गया. हनुमान जी का यह रूप देख अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से प्राण रक्षा की विनती करने लगे. जैसे ही हनुमान जी ने पुल पर पैर रखना चाहा, उनके चरण के स्पर्श से ही समस्त पुल टूट गया.

अर्जुन लगे प्राण त्यागने
यह देख अर्जुन ने घोषणा की कि अब मैं अपने वचन अनुसार अग्नि में जलकर अपने प्राणो की आहुति दूंगा, हनुमान बोले की इसकी कोई जरूरत नहीं, यह बात बस आपके और मेरे बीच रहेगी परंतु अपने संकल्प के पक्के अर्जुन भी नहीं माने और अग्निदाह के लिए लकड़ी इखट्टा करने लगे. अब यह देख हनुमान बड़े चिंतित हुए और वो भी भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन की रक्षा की प्रार्थना करने लगे.

कन्हैया ने रचा खेल
यह देख भगवान कृष्ण एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में वहां प्रकट होकर बोले, “यह लकड़ी आदि की व्यवस्था कैसी? भोजन बना रहे हो क्या? अगर भोजन बना रहे हो तो हम भी खाएंगे.” यह सुन अर्जुन ने उस ब्राह्मण को सारी बात कह सुनाई. तब ब्राह्मण के रूप में आए भगवान कृष्ण बोले, “कौन हारा कौन जीता इसका निर्णय किसने किया, निर्णायक कौन था?” इसपर अर्जुन बोले निर्णायक तो कोई नहीं था, तब ब्राह्मण ने दोबारा पुल बांधने और तोड़ने का आदेश दिया और खुद निर्णायक बने.

भगवान ने दोनों भक्तों को ह्रदय से लगाया
इसके बाद फिर से अर्जुन ने पुल बांधा और फिर से हनुमान जी पुल पर खड़े हुए परंतु इस बार भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त की लाज बचाने के लिए कछुआ बनकर पुल के नीचे खड़े हो गये और हनुमान जी ने पुल पार किया परंतु अबकी बार पुल हिला भी नहीं. तभी भगवान अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हुए और हनुमान जी एवं अर्जुन दोनों को अपने ह्रदय से लगा लिया.

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